मुस्लिम समुदाय को मिलेगी अलग पहचान, सरकार ला रही नया प्रस्ताव, जानिए पूरा मामला

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नई दिल्ली। भारत एक देश है जहां अनेक धर्मों के लोग साथ रहते हैं। हर त्योहार को साथ में प्यार और सद्भाव के साथ मनाया जाता है। यही हमें बाकी देशों से अलग और खास बनाता है लेकिन इस बीच असम सरकार एक ऐसा आईडी प्रपोजल लेकर आई है जिसे लेकर वो विपक्ष के निशाने पर आ गई है। न सिर्फ विपक्ष बल्कि सवाल ये भी उठने लगे हैं कि क्या असम की सरकार मुसलमानों को विभाजन का हिस्सा बनाना चाहती है। अगर आपको पूरा मामला नहीं पता है तो आपको बता दें, असम की हिमंत बिश्व शर्मा सरकार राज्य के मुसलमानों को एक अलग समूह के रूप में पहचान के लिए नया आईडी प्रपोजल लाई है। इस आईडी प्रपोजल को लेकर कहा ये जा रहा है कि ये समुदाय के भले के लिए लाया गया है लेकिन विपक्ष को इससे सरकार को घेरने का मौका मिल गया है। विपक्ष आरोप लगा रहा है कि असम सरकार मुसलमानों के बीच विभाजन के मकसद से ऐसा कर रही है।

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बता दें, बीते हफ्ते, एक पैनल ने मुस्लिम समुदाय की पहचान के लिए पहचान पत्र या प्रमाण पत्र और अधिसूचना जारी करने की सिफारिश की गई थी। इसमें बंगाली भाषा बोलने वाले मुस्लिम जो बांग्लादेश से आए थे, उन्हें शामिल नहीं किया गया है। प्रस्ताव में असम में अपनी उत्पत्ति का दावा करने वाले मुसलमानों को मुख्य चार समूहों में बांटा गया है। इन समुदायों में समूह गोरिया और मोरिया (ऊपरी असम से), देशी (निचले असम से) और जुल्हा मुस्लिम (चाय बागानों से) शामिल है। पैनल का गठन बीते साल जुलाई में मुख्यमंत्री हिमंत बिस्वा सरमा की विभिन्न क्षेत्रों के असमिया मुसलमानों के साथ बैठक के बाद किया गया था। इन लोगों से सरमा का मुलाकात का मकसद समुदाय का कल्याण था। बैठक में उन्होंने इस बात पर जोर दिया कि असमिया मुसलमानों की विशिष्टता को संरक्षित किया जाना चाहिए।

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ऑल इंडिया यूनाइटेड डेमोक्रेटिक फ्रंट (AIUDF) के विधायक अमीनुल इस्लाम का इसे लेकर कहना है कि पैनल का प्रस्ताव एक राजनीतिक बयानबाजी का हिस्सा था। उनका आरोप है कि राज्य सरकार मुसलमानों को बांटने की मंशा से ये सब कर रही है। इसके साथ ही अमीनुल इस्लाम का ये भी कहना है कि हमारे पास इसका कोई आधार नहीं है कि असमिया कौन हैं। इसके आगे उन्होंने सवाल किया कि असमिया और बंगाली मुसलमानों के बीच कई शादियां हुई हैं। ऐसे परिवारों की पहचान कैसे की जाएगी?