उत्तराखंड: पहली बार नैनीताल जिले से कैबिनेट में एक भी मंत्री नहीं

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हल्द्वानी। पुष्‍कर सिंह धामी ने दूसरी बार उत्‍तराखंड के मुख्‍यमंत्री के रूप में शपथ ली। वह प्रदेश के 12वें मुख्‍यमंत्री बनें। वहीं, अन्‍य आठ मंत्रियों ने भी शपथ ली।जिसमें नैनीताल जिले से एक भी विधायक को मंत्री पद में नहीं लिया गया। पहली बार नैनीताल जिले के हाथ मायूसी लगी है। जबकि इस बार कुमाऊं में भाजपा का सबसे अच्छा प्रदर्शन इसी जिले का रहा है। कांग्रेस के दिग्गज नेता व पूर्व सीएम हरीश रावत की हार भी इसी जिले के लालकुआं विधानसभा क्षेत्र से हुई है। वहीं, धामी की नई मंत्रीमंडल में एक कैबिनेट मंत्री का पत्ता साफ हो गया है।

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कुमाऊं का सबसे महत्वपूर्ण जिला हमेशा राजनीतिक सुर्खियों में रहता है। जिले में छह विधानसभा सीटें हैं। हल्द्वानी सीट छोड़कर बाकी सभी पांच सीटें भाजपा के कब्जे में आई हैं। कालाढूंगी से विधायक बंशीधर भगत पिछले धामी सरकार में कैबिनेट मंत्री थे। उन्हें इस बार मंत्रीमंडल में शामिल नहीं किया गया। इसके अलावा तीसरी बार जीतने वाले दीवान सिंह बिष्ट की उम्मीद भी धरी रह गई। इसके अलावा लालकुआं सीट से डा. मोहन सिंह बिष्ट ने कांग्रेस के दिग्गज नेता व पूर्व सीएम हरीश रावत को परास्त किया है। इसके बाद पहली बार के विधायक बिष्ट सुर्खियों में आ गए। तमाम समीकरणों के तहत बिष्ट के भी मंत्रीमंडल में शामिल होने के कयास लग रहे थे, लेकिन संभव नहीं हो सका।

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वहीं कांग्रेस से भाजपा में शामिल होकर टिकट लाने वाले सरिता आर्य के अलावा निर्दलीय से भाजपा में शामिल होने वाले राम सिंह कैड़ा ने भी जीत हासिल की है। इनमें से किसी एक को भी मंत्रीमंडल में शामिल न किए जाने से मायूसी छाई हुई है। जबकि इस जिले से राज्य बनने के बाद कोई न कोई विधायक मंत्री पद प्राप्त करते रहा।

राज्य बनने के बाद 2002 में हल्द्वानी सीट से जीती डा. इंदिरा हृदयेश वरिष्ठ मंत्रियों में शामिल रही थी। 2007 में हल्द्वानी सीट से जीते बंशीधर भगत व धारी क्षेत्र से गोविंद सिंह बिष्ट मंत्री रहे। फिर 2012 में कांग्रेस की सरकार आई। तब डा. इंदिरा हृदयेश, लालकुआं सीट से हरीश चंद्र दुर्गापाल व रामनगर से अमृता रावत मंत्री रहे थे। 2017 में फिर भाजपा की सरकार में साढ़े चार साल तक इस जिले से कोई भी मंत्री नहीं रहा। अंत में बंशीधर भगत से प्रदेश अध्यक्ष का दायित्व लेकर उन्हें कैबिनेट मंत्री बनाया गया था। इस बार भी क्षेत्रवासियों को जिले से किसी विधायक को मंत्री बनाए जाने की उम्मीद थी, लेकिन किसी को भी शपथ लेने के लिए नहीं बुलाया गया। जिससे जिले में मायूसी रही।